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नई दिल्ली : बदलते वक्त के साथ युद्धों में निर्णायक भूमिका निभाने वाले हथियार भी बदल जाते हैं। आज के दौर को अगर युद्धक ड्रोन का दौर कहा जाए तो गलत नहीं होगा। किसी सेना की ताकत परंपरागत हथियारों जैसे तोप, टैंक, मिसाइल, रॉकेट, युद्धक विमान, युद्धपोत, पनडुब्बी वगैरह से मापे जाते हैं। लेकिन इस लिस्ट में अब ड्रोन काफी ऊपर है। 2020 में अजरबैजान और अर्मेनिया के बीच में हुए नागोर्नो-काराबाख युद्ध इस बात का गवाह है। तब अजरबैजान ने तुर्की में बने बायरकटार टीबी-2 ड्रोन के दम पर अपने से कहीं ज्यादा ताकतवर अर्मेनियाई सेना को धूल चटा दी थी। अर्मेनिया के पास आधुनिक युद्ध के ज्यादातर हथियार थे, मसलन बड़ी सेना, रूसी टी-72 टैंक, मिसाइल, रॉकेट, बख्तरबंद गाड़ियां वगैरह। लेकिन नहीं था तो ड्रोन और एंटी-ड्रोन सिस्टम जिससे बायरकटार को ध्वस्त किया जा सके। अब तुर्की के उसी बायरकटार टीबी-2 ड्रोन को बांग्लादेश ने भारत की सीमा पर तैनात किया है। ऐसे वक्त में जब दोनों देशों के रिश्ते अबतक के सबसे ज्यादा तनाव वाले दौर से गुजर रहे हैं। एक साल पहले, पाकिस्तान ने भी इसी ड्रोन को कुछ रणनीतिक जगहों पर तैनात कर रखा है। मालदीव ने भी इसे खरीद रखा है। भारत के पड़ोस में दोनों ओर तुर्की के खतरनाक ड्रोन का तैनात होना नई दिल्ली के लिए कितना बड़ा खतरा है और इस खतरे से निपटने की भारत की तैयारी क्या है, आइए समझते हैं।
बायरकटार टीबी 2 ड्रोन कितना खतरनाक?
बायरकटार का अर्थ होता है ध्वजवाहक। बायरकटार TB2 ड्रोन तुर्की में बनाया गया है। यह अमेरिकी MQ-9 रीपर से 8 गुना हल्का है और इसकी अधिकतम गति 230 किमी प्रति घंटा है। ये ड्रोन MAM (स्मार्ट माइक्रो म्यूनिशन) लेजर-गाइडेड मिसाइलों से आधुनिक टैंकों को तबाह कर सकते हैं। एक TB2 ड्रोन एक उड़ान में चार MAM ले जा सकता है। इसकी अधिकतम पेलोड क्षमता 150 किलोग्राम है। इसमें इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल कैमरा, इंफ्रारेड कैमरा, लेजर डिजाइनर, लेजर रेंज फाइंडर और लेजर पॉइंटर होते हैं। बायरकटार TB2 एक मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस (MALE) श्रेणी का ड्रोन है। यह पारंपरिक रेडार की पकड़ में आए बिना प्रतिद्वंद्वी के इलाके में गहराई तक घुसने में सक्षम है।
24 घंटे से ज्यादा की उड़ान समय और लगभग 300 किलोमीटर की परिचालन सीमा के साथ, TB2 ड्रोन दुश्मन के इलाके में गहराई तक घुसकर निशाने को नष्ट कर सकते हैं। कुछ न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक, ये ड्रोन निशाने के पास पहुंचते समय एक अजीब सी आवाज निकालते हैं जो मनोवैज्ञानिक रूप से परेशान करने वाली होती है। नागोर्नो-कराबाख युद्ध में बायरकटार TB2 ने युद्ध का रुख कैसे मोड़ा, यह सबके सामने था।
2020 के नागोर्नो-काराबाख युद्ध में अर्मेनिया के पास रूसी T72 टैंक, मिसाइल और रॉकेट थे। लेकिन अजरबैजान के छोटे से सैन्य बल ने बायरकटार TB2 और इजरायली कामिकेज ड्रोन की मदद से आर्मेनिया को करारी शिकस्त दी।
बांग्लादेश के कदम को नजरअंदाज नहीं कर सकता भारत
बांग्लादेशी सेना इन ड्रोनों का इस्तेमाल खुफिया जानकारी, निगरानी और टोही मिशन के लिए कर रही है। बांग्लादेश भले ही इसे रक्षा उद्देश्य बता रहा हो, लेकिन संवेदनशील क्षेत्र में ऐसे आधुनिक ड्रोन की तैनाती को भारत नजरअंदाज नहीं कर सकता।
भारत के पास एंटी-ड्रोन तकनीक है। इंडियन आर्मी के पास भी हेरॉन TP जैसे ड्रोन हैं। बांग्लादेश की तरफ से तुर्की के ड्रोन की तैनाती के बाद सीमा पर भारत की तरफ से निगरानी बढ़ाना और संवेदनशील इलाकों में एंटी-ड्रोन अभियान तेज करना लाजिमी है।
बांग्लादेश में बायरकटार की तैनाती भारत के लिए चुनौती
भारत-बांग्लादेश सीमा पर बायरकटार TB2 ड्रोन की तैनाती भारत के लिए एक चुनौती हो सकती है क्योंकि भारत की सबसे लंबी सीमा बांग्लादेश के साथ लगती है। सीमा का भू-भाग, जिसमें पहाड़, नदियां और घने जंगल शामिल हैं, भारतीय सेना के लिए इन छोटे और कम आवाज वाले ड्रोनों को ट्रैक करना मुश्किल बना देता है।
भारतीय उपमहाद्वीप में बांग्लादेश ही बायरकटार TB2 ड्रोन का इस्तेमाल करने वाला अकेला देश नहीं है। 2023 में, पाकिस्तान को तुर्की से बायरकटार TB2 ड्रोनों का पहला बैच मिला और उसने उन्हें रणनीतिक स्थानों पर तैनात किया। अक्टूबर 2022 में, पाकिस्तान वायु सेना के अधिकारियों की एक टीम ने तुर्की में इस ड्रोन को ऑपरेट करने की व्यापक ट्रेनिंग ली थी। इसी साल मार्च में मालदीव ने भी तुर्की से 6 बायरकटार ड्रोन खरीद का सौदा किया है।
ड्रोन के मामले में भारत
भारत ने इस साल अक्टूबर में अमेरिका से 31 प्रीडेटर ड्रोन खरीदने के लिए 32,000 करोड़ रुपये के सौदे पर हस्ताक्षर होने से भारत की ड्रोन क्षमता को काफी बल मिला है। इनमें से 15 प्रीडेटर भारतीय नौसेना को मिलेंगे जबकि बाकी 16 ड्रोन वायु सेना और थल सेना के बीच बराबर बांटे जाएंगे। AGM-114R हेलफायर मिसाइल और लेजर-निर्देशित स्मॉल डायमीटर बम (SDB) जैसे उन्नत हथियारों से लैस प्रीडेटर ड्रोन भारतीय सेना के लिए ताकत बढ़ाने वाले साबित होंगे।
भारतीय सेना ने हाल ही में इजराइल से चार हेरॉन मार्क-II ड्रोन शामिल किए हैं। इस बीच, डीआरडीओ पिछले 13 वर्षों में 1,800 करोड़ रुपये का निवेश करके अपना खुद का MALE-श्रेणी का ड्रोन तापस BH-201 भी विकसित कर रहा है। हालांकि, तापस BH-201 को अभी तक भारतीय सशस्त्र बलों में शामिल नहीं किया गया है क्योंकि इसे ड्रोन प्लेटफॉर्म को प्रमाणित करवाने की बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। DRDO के अनुसार, तापस ने 28,000 फीट की ऊंचाई पर लगभग 18 घंटे की उड़ान हासिल की है। हालांकि, मानदंडों और भारतीय सेना की जरूरतों के अनुसार, एक MALE रिमोटली-पायलट विमान 24 घंटे की उड़ान के भीतर कम से कम 30,000 फीट की ऊंचाई हासिल करने में सक्षम होना चाहिए।
भारत के पास है ड्रोन का काम-तमाम करने की तकनीक
भारत के पास स्वार्म ड्रोन भी है जो दुश्मन के ठिकानों को ध्वस्त करने में सक्षम है। 2021 में सेना दिवस परेड के दौरान भारतीय सेना ने स्वार्म ड्रोन के इस्तेमाल से दुश्मन के तोपखाने को नष्ट करने की क्षमता का भी प्रदर्शन किया। इस साल मार्च में भारत ने स्वदेशी लेजर-आधारित इंटीग्रेटेड ड्रोन डिटेक्शन एंड इंटरडिक्शन सिस्टम (IDD&IS) को शामिल करके महत्वपूर्ण एंटी-ड्रोन तकनीक भी हासिल की। लेजर तकनीक का उपयोग करके ड्रोन को मार गिराने और उसे जाम करने की क्षमता के साथ IDD&IS काफी अहम है। ये 7 से 8 किलोमीटर की रेंज में ड्रोन को डिटेक्ट कर सकता है और निशाना बना सकता है।
बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में कट्टरपंथियों की कठपुतली सरकार है। यूनुस की अंतरिम सरकार कट्टरपंथी दंगाइयों पर लगाम लगाने में नाकाम रही है। बांग्लादेश में चुन-चुनकर अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है। उनके धर्मस्थल जलाए जा रहे हैं। घर जलाए जा रहे हैं। हत्याएं हो रही हैं। लिंचिंग हो रही हैं। तमाम तरह के अत्याचार हो रहे हैं और यूनुस की कायर सरकार आंख मूंदे हुए हैं। इतना ही नहीं, कट्टरपंथियों की कठपुतली सरकार ने हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास के अलावा इस्कॉन के 4 संतों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया है। वहां की सरकार में ओहदेदार भारत के खिलाफ जहरीली जुबान का इस्तेमाल कर रहे हैं। दोनों देशों के रिश्ते बहुत ही तनाव के दौर से गुजर रहे हैं। भारत के साथ तनावपूर्ण संबंधों के बीच बांग्लादेश का सीमा पर बायरकटार ड्रोन तैनात करना भारत के लिए चिंता की बात है।बायरकटार टीबी 2 ड्रोन कितना खतरनाक?
बायरकटार का अर्थ होता है ध्वजवाहक। बायरकटार TB2 ड्रोन तुर्की में बनाया गया है। यह अमेरिकी MQ-9 रीपर से 8 गुना हल्का है और इसकी अधिकतम गति 230 किमी प्रति घंटा है। ये ड्रोन MAM (स्मार्ट माइक्रो म्यूनिशन) लेजर-गाइडेड मिसाइलों से आधुनिक टैंकों को तबाह कर सकते हैं। एक TB2 ड्रोन एक उड़ान में चार MAM ले जा सकता है। इसकी अधिकतम पेलोड क्षमता 150 किलोग्राम है। इसमें इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल कैमरा, इंफ्रारेड कैमरा, लेजर डिजाइनर, लेजर रेंज फाइंडर और लेजर पॉइंटर होते हैं। बायरकटार TB2 एक मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस (MALE) श्रेणी का ड्रोन है। यह पारंपरिक रेडार की पकड़ में आए बिना प्रतिद्वंद्वी के इलाके में गहराई तक घुसने में सक्षम है।
24 घंटे से ज्यादा की उड़ान समय और लगभग 300 किलोमीटर की परिचालन सीमा के साथ, TB2 ड्रोन दुश्मन के इलाके में गहराई तक घुसकर निशाने को नष्ट कर सकते हैं। कुछ न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक, ये ड्रोन निशाने के पास पहुंचते समय एक अजीब सी आवाज निकालते हैं जो मनोवैज्ञानिक रूप से परेशान करने वाली होती है। नागोर्नो-कराबाख युद्ध में बायरकटार TB2 ने युद्ध का रुख कैसे मोड़ा, यह सबके सामने था।
2020 के नागोर्नो-काराबाख युद्ध में अर्मेनिया के पास रूसी T72 टैंक, मिसाइल और रॉकेट थे। लेकिन अजरबैजान के छोटे से सैन्य बल ने बायरकटार TB2 और इजरायली कामिकेज ड्रोन की मदद से आर्मेनिया को करारी शिकस्त दी।
बांग्लादेश के कदम को नजरअंदाज नहीं कर सकता भारत
बांग्लादेशी सेना इन ड्रोनों का इस्तेमाल खुफिया जानकारी, निगरानी और टोही मिशन के लिए कर रही है। बांग्लादेश भले ही इसे रक्षा उद्देश्य बता रहा हो, लेकिन संवेदनशील क्षेत्र में ऐसे आधुनिक ड्रोन की तैनाती को भारत नजरअंदाज नहीं कर सकता।
भारत के पास एंटी-ड्रोन तकनीक है। इंडियन आर्मी के पास भी हेरॉन TP जैसे ड्रोन हैं। बांग्लादेश की तरफ से तुर्की के ड्रोन की तैनाती के बाद सीमा पर भारत की तरफ से निगरानी बढ़ाना और संवेदनशील इलाकों में एंटी-ड्रोन अभियान तेज करना लाजिमी है।
बांग्लादेश में बायरकटार की तैनाती भारत के लिए चुनौती
भारत-बांग्लादेश सीमा पर बायरकटार TB2 ड्रोन की तैनाती भारत के लिए एक चुनौती हो सकती है क्योंकि भारत की सबसे लंबी सीमा बांग्लादेश के साथ लगती है। सीमा का भू-भाग, जिसमें पहाड़, नदियां और घने जंगल शामिल हैं, भारतीय सेना के लिए इन छोटे और कम आवाज वाले ड्रोनों को ट्रैक करना मुश्किल बना देता है।
भारतीय उपमहाद्वीप में बांग्लादेश ही बायरकटार TB2 ड्रोन का इस्तेमाल करने वाला अकेला देश नहीं है। 2023 में, पाकिस्तान को तुर्की से बायरकटार TB2 ड्रोनों का पहला बैच मिला और उसने उन्हें रणनीतिक स्थानों पर तैनात किया। अक्टूबर 2022 में, पाकिस्तान वायु सेना के अधिकारियों की एक टीम ने तुर्की में इस ड्रोन को ऑपरेट करने की व्यापक ट्रेनिंग ली थी। इसी साल मार्च में मालदीव ने भी तुर्की से 6 बायरकटार ड्रोन खरीद का सौदा किया है।
ड्रोन के मामले में भारत
भारत ने इस साल अक्टूबर में अमेरिका से 31 प्रीडेटर ड्रोन खरीदने के लिए 32,000 करोड़ रुपये के सौदे पर हस्ताक्षर होने से भारत की ड्रोन क्षमता को काफी बल मिला है। इनमें से 15 प्रीडेटर भारतीय नौसेना को मिलेंगे जबकि बाकी 16 ड्रोन वायु सेना और थल सेना के बीच बराबर बांटे जाएंगे। AGM-114R हेलफायर मिसाइल और लेजर-निर्देशित स्मॉल डायमीटर बम (SDB) जैसे उन्नत हथियारों से लैस प्रीडेटर ड्रोन भारतीय सेना के लिए ताकत बढ़ाने वाले साबित होंगे।
भारतीय सेना ने हाल ही में इजराइल से चार हेरॉन मार्क-II ड्रोन शामिल किए हैं। इस बीच, डीआरडीओ पिछले 13 वर्षों में 1,800 करोड़ रुपये का निवेश करके अपना खुद का MALE-श्रेणी का ड्रोन तापस BH-201 भी विकसित कर रहा है। हालांकि, तापस BH-201 को अभी तक भारतीय सशस्त्र बलों में शामिल नहीं किया गया है क्योंकि इसे ड्रोन प्लेटफॉर्म को प्रमाणित करवाने की बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। DRDO के अनुसार, तापस ने 28,000 फीट की ऊंचाई पर लगभग 18 घंटे की उड़ान हासिल की है। हालांकि, मानदंडों और भारतीय सेना की जरूरतों के अनुसार, एक MALE रिमोटली-पायलट विमान 24 घंटे की उड़ान के भीतर कम से कम 30,000 फीट की ऊंचाई हासिल करने में सक्षम होना चाहिए।
भारत के पास है ड्रोन का काम-तमाम करने की तकनीक
भारत के पास स्वार्म ड्रोन भी है जो दुश्मन के ठिकानों को ध्वस्त करने में सक्षम है। 2021 में सेना दिवस परेड के दौरान भारतीय सेना ने स्वार्म ड्रोन के इस्तेमाल से दुश्मन के तोपखाने को नष्ट करने की क्षमता का भी प्रदर्शन किया। इस साल मार्च में भारत ने स्वदेशी लेजर-आधारित इंटीग्रेटेड ड्रोन डिटेक्शन एंड इंटरडिक्शन सिस्टम (IDD&IS) को शामिल करके महत्वपूर्ण एंटी-ड्रोन तकनीक भी हासिल की। लेजर तकनीक का उपयोग करके ड्रोन को मार गिराने और उसे जाम करने की क्षमता के साथ IDD&IS काफी अहम है। ये 7 से 8 किलोमीटर की रेंज में ड्रोन को डिटेक्ट कर सकता है और निशाना बना सकता है।
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